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हिमाचल: पहले से थी चेतावनी, फिर क्यों बनाया नाले के पास मजदूरों का ठिकाना… बादल फटा और बह गए 20 लोग

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June 26, 2025
in हिमाचल प्रदेश
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हिमाचल: पहले से थी चेतावनी, फिर क्यों बनाया नाले के पास मजदूरों का ठिकाना… बादल फटा और बह गए 20 लोग
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हिमाचल प्रदेश में कई दिनों से लगातार भारी बारिश हो रही है. बुधवार को कई जिलों से बादल फटने की घटना सामने आई. यहां अचानक आई बाढ़ ने भारी तबाही मचाई. सबसे ज्यादा बुरा मंजर कांगड़ा और कुल्लू में देखने को मिली. कांगड़ा के धर्मशाला में दो मजदूरों की मौत हो गई और 20 से ज्यादा मजदूर पानी के तेज बहाव में बह गए. यही नहीं इस तबाही में कई लोगों के सिरों से छत छिन गए और उनके आशियाने उजड़ गए.

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कांगड़ा के मनुनी खड्ड में इंदिरा प्रियदर्शिनी जलविद्युत परियोजना स्थल के पास एक श्रमिक कॉलोनी में रह रहे लगभग 15-20 मजदूर खनियारा मनुनी खड्ड में जलस्तर बढ़ने की वजह से बह गए. कुल्लू के रेहला बिहाल में तीन लोग अपने घरों से कीमती सामान निकालने की कोशिश करते समय बाढ़ में बह गए. उपायुक्त हेमराज बैरवा ने घटनास्थल का दौरा करने के बाद बताया कि एसडीआरएफ की दो टीम और होमगार्ड की एक टीम को मौके पर तैनात किया गया है और रेस्क्यू ऑपरेशन किया जा रहा है.

मजदूरों के लिए टिन शेड बनाए गए

जिस जगह मजदूरों के लिए टिन शेड बनाए गए थे, वह स्थान हर साल बारिश के दौरान जलभराव और तेज बहाव के लिए जाना जाता है. इसके बावजूद मजदूरों को वहां ठहराया गया. वह भी बिना किसी मजबूत संरचना, सुरक्षा दीवार या आपातकालीन निकास की व्यवस्था के. धर्मशाला से बीजेपी विधायक सुधीर शर्मा ने भी घटना स्थल का दौरा करने के बाद माना कि यह सरासर लापरवाही का मामला है. उन्होंने कहा, “नाले के इतने पास मजदूरों के लिए शेड बनाना और मौसम की चेतावनी के बावजूद उन्हें वहां रहने देना गैरजिम्मेदारी है. इसकी जांच होनी चाहिए.”

‘सब कुछ मिनटों में खत्म हो गया’

कुछ बचे हुए मजदूरों ने बताया कि उन्होंने कई बार परियोजना प्रबंधन से कहा था कि नाले का पानी कभी भी खतरा बन सकता है, लेकिन उन्हें आश्वासन देकर चुप करा दिया गया. एक मजदूर ने कहा, ‘हमें कहा गया था कि डरने की जरूरत नहीं है, हमने पहले भी बारिश देखी है. लेकिन इस बार सब कुछ मिनटों में खत्म हो गया.’ उनके साथी दो मजदूरों की मौत हो गई और कई लापता हो गए.

मजदूरों की जान की कीमत इतनी कम?

इस घटना के बाद कई सवाल खड़े होते हैं. परियोजना स्थल के पास मजदूरों को बसाने से पहले भूगर्भीय और मौसमी जोखिमों का मूल्यांकन क्यों नहीं किया गया, क्या मजदूरों की जान की कीमत इतनी कम है कि उन्हें नाले के किनारे असुरक्षित तंबुओं में रहने के लिए जगह दी जाए और क्या ऐसी लापरवाहियों के लिए कोई जिम्मेदार भी ठहराया जाएगा?


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