आषाढ़ की पहली संकष्टी चतुर्थी का हिन्दू धर्म में बहुत अधिक महत्व है. इस दिन विवाहित महिलाएं व्रत रखकर विधि-विधान से भगवान गणेश की पूजा-अर्चना करती हैं और बप्पा को उनकी पसंद का भोग लगाती हैं. इसके साथ ही अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए गणेश भगवान से प्रार्थना करती हैं. जो महिलाएं संकष्टी चतुर्थी का व्रत रख रही हैं, उन्हें पूजा के समय ये व्रत कथा अवश्य सुननी या पढ़नी चाहिए. क्योंकि इस कथा के बिना ये व्रत पूरा नहीं होता है और आपकी इच्छा भी अधूरी रह सकती है.
पूजा के समय पढ़ें ये व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार पार्वती जी ने पूछा हे वत्स! आषाढ़ कृष्ण चतुर्थी को बहुत ही शुभदायिनी कहा गया है. आप उसका विधान बतलाइए. इस मास के गणेशजी पूजा किस प्रकार करनी चाहिए. साथ ही इस महीने में उनका क्या नाम रखा गया है? इस पर गणेशजी बोले हे माता! पूर्वकाल में यही प्रश्न युधिष्ठिर ने भी किया था और उन्हें जो भगवान कृष्ण ने उत्तर दिया था मैं उसको बताता हूं, आप सुनिए.
श्रीकृष्ण ने कहा हे राजन! गणेश जी की प्रतिकारक, विध्ननाशक, पुराण इतिहास में वर्णित कथा को कह रहा हूं. आप सुनिए. हे कुंती पुत्र! आषाढ़ कृष्ण चतुर्थी के गणेश जी का नाम लम्बोदर हैं. उसका पूजन पूर्व वर्णित विधि से करें. द्वापर युग में महिष्मति नगरी का महीजित नामक राजा था. वह बड़ा ही पुण्यशील और प्रतापी राजा था. वह अपनी प्रजा का पालन अपने पुत्र की तरह करता था. लेकिन, संतान विहीन होने के कारण उसे राजमहल का वैभव अच्छा नहीं लगता था. वेदों में निसंतान का जीवन व्यर्थ माना गया हैं.
यदि संतान विहीन व्यक्ति अपने पितरों को जल दान देता हैं तो उसके पितृगण उस जल को गर्म जल के रूप में ग्रहण करते हैं. इसी उहापोह में राजा का बहुत समय व्यतीत हो गया. उन्होंने पुत्र प्राप्ति के लिए बहुत से दान, यज्ञ आदि कार्य किए. फिर भी राजा को पुत्र की प्राप्ति नहीं हो पाई. उनकी जवानी बीत गई और बुढ़ापा आ गया लेकिन, वंश की वृद्धि भी नहीं होती है.
कभी किसी पर नहीं किया अत्याचार
राजा ने विद्वान ब्राह्मणों और प्रजाजनों संदर्भ में परामर्श किया. राजा ने कहा कि हे ब्राह्मणों तथा प्रजाजनों! हम तो संतानहीन हो गए, अब मेरी क्या गति होगी? मैंने जीवन में तो किंचित भी पाप कर्म नहीं किया. मैंने कभी अत्याचार द्वारा धन संग्रह नहीं किया. मैंने तो सदैव प्रजा का पुत्रवत पालन किया तथा धर्माचरण द्वारा ही पृथ्वी शासन किया. मैंने चोर-डाकुओं को सजा दी. गौ, ब्राह्मणों का हित चिंतन करते हुए शिष्ट पुरुषों का आदर सत्कार किया. फिर भी मुझे अब तक पुत्र न होने का क्या कारण हैं? विद्वान ब्राह्मणों ने कहा कि हे महाराज! हम लोग वैसा ही प्रयत्न करेंगे जिससे आपके वंश की वृद्धि हो. इस प्रकार कहकर सब लोग युक्ति सोचने लगे. सारी प्रजा राजा के मनोरथ की सिद्धि के लिए ब्राह्मणों के साथ वन में चली गई.
तपस्या में लीन थे मुनिराज
वन में उन लोगों की मुलाकात एक श्रेष्ठ मुनि से हुई. वे मुनिराज निराहार रहकर तपस्या में लीन थे. ब्रह्माजी के सामान वे आत्मजीत, क्रोधजित तथा सनातन पुरुष थे. सम्पूर्ण वेद-विशारद, दीर्धायु, अनंत और अनेक ब्रह्म ज्ञान संपन्न वे महात्मा थे. उनका निर्मल नाम लोमश ऋषि था. प्रत्येक कल्पांत में उनके एक-एक रोम पतित होते थे. इसलिए उनका नाम लोमश ऋषि पड़ गया. ऐसे त्रिकालदर्शी महर्षि लोमेश के उन लोगों ने दर्शन किए. सब लोग उन तेजस्वी मुनि के पास गये. सभी लोग उनके समक्ष खड़े हो गये.
मुनि के दर्शन से सभी लोग प्रसन्न होकर कहने लगे कि हम लोगों को सौभाग्य से ही ऐसे मुनि के दर्शन हुए. इनके उपदेश से हम सभी का मंगल होगा, ऐसा निश्चय कर उन लोगों ने मुनिराज से कहा. हे ब्रह्मऋषि! हम लोगों के दुःख का कारण सुनिए. अपने संदेह के निवारण के लिए हम लोग आपके पास आये हैं. हे भगवन! आप कोई उपाय बताएं.
संतान की प्राप्ति नहीं हुई
महर्षि लोमेश ने पूछा-सज्जनों! आप लोग यहां किस अभिप्राय से आए हैं? मुझसे आपका क्या प्रयोजन है? पूरी बात स्पष्ट रुप से कहीए. मैं आपके सभी संदेहों का निवारण करुंगा. प्रजाजनों ने उत्तर दिया-हे मुनिवर! हम माहिष्मती नगरी के निवासी हैं. हमारे राजा का नाम महीजित है. हमारे राजा का नाम महीजित है. वह राजा ब्राह्मणों का रक्षक, धर्मात्मा, दानवीर, शूरवीर एवं मधुरभाषी है. उस राजा ने हम लोगों का पालन पोषण किया है, लेकिन उन्हें आज तक संतान की प्राप्ति नहीं हुई है.
उन्होंने कहा हे भगवान! माता पिता को केवल जन्मदाता ही होतेहैं. लेकिन, असल में पोषक तो राजा ही होता है. उन्हीं राजा के लिए हम गहन वन में आए हैं. आप कोई ऐसी युति बताइए जिससे राजा को संतान की प्राप्ति हो. ऐसे गुणवान राजा को कोई पुत्र न हो, यह बड़े दुर्भाग्य की बात हैं. हे मुनिवर! किस व्रत, दान, पूजन आदि अनुष्ठान कराने से राजा को पुत्र होगा. आप कृपा करके हम सभी को बताएं.
पुत्र की हुई प्राप्ति
प्रजा की बात सुनकर महर्षि लोमेश बोले हे भक्तजनों आप लोग ध्यानपूर्वक सुने मैं संकट नाशन व्रत को बतला रहा हूँ. यह व्रत निसंतान को संतान और निर्धनों को धन देता हैं. आषाढ़ कृष्ण चतुर्थी को एकदन्त गजानन नामक गणेश की पूजा करें. पूरे विधि विधान से व्रत करके राजा ब्राह्मणों को भोजन कराएं. साथ ही उन्हें वस्त्र दान करें. गणेश जी की कृपा से उन्हें अवश्य ही पुत्र की प्राप्ति होगी. महर्षि लोमश की यह बात सुनकर सभी लोग करबद्ध होकर उठ खड़े हुए. सभी ने आकर यह बात राजा से बताई. इसे सुनकर राजा बहुत प्रसन्न हुए. और उन्होंने श्रद्धापूर्वक विधिवत गणेश चतुर्थी का व्रत करके ब्राह्मणों को भोजन वस्त्र आदि का दान दिया. रानी सुदक्षिणा को गणेश जी कृपा से सुन्दर और सुलक्षण पुत्र प्राप्त हुआ.
श्री कृष्ण जी कहते है कि हे राजन! इस व्रत का ऐसा ही प्रभाव हैं. जो व्यक्ति इस व्रत को श्रद्धा पूर्वक करेंगे वे समस्त सांसारिक सुख के अधिकारी होंगे. श्रीकृष्ण जी ने कहा कि हे महाराज! आप भी इस व्रत को विधि पूर्वक कीजिये. श्री गणेश जी की कृपा से आपकी सभी मनोकामनाएं पूरी होंगी. साथ ही साथ आपके शत्रुओं का भी नाश होगा.