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श्रीकृष्ण जन्मभूमि विवाद पर इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला, ‘शाही ईदगाह’ शब्द बदलने की याचिका खारिज

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July 4, 2025
in उत्तरप्रदेश
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श्रीकृष्ण जन्मभूमि विवाद पर इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला, ‘शाही ईदगाह’ शब्द बदलने की याचिका खारिज
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श्रीकृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह मस्जिद विवाद से जुड़े मामलों में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक आवेदन को खारिज कर दिया, जिसमें मांग की गई थी कि अदालत में लंबित मुकदमों की भविष्य की कार्यवाही में ‘शाही ईदगाह मस्जिद’ के स्थान पर ‘विवादित संरचना’ शब्द का इस्तेमाल किया जाए. यह आदेश न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्रा की एकल पीठ ने पारित किया. कोर्ट ने स्पष्ट किया कि इस स्तर पर इस तरह के बदलाव की कोई आवश्यकता नहीं है, और आवेदन को खारिज कर दिया गया.

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यह आवेदन अधिवक्ता महेंद्र प्रताप सिंह द्वारा दायर किया गया था, जो श्रीकृष्ण जन्मभूमि परिसर से कथित अतिक्रमण हटाने की मांग करने वाले मूल वाद का हिस्सा हैं. सिंह के आवेदन का समर्थन वादी समेत कई अन्य पक्षों ने भी किया था.

हाईकोर्ट में हो रही है मामले की सुनवाई

श्रीकृष्ण जन्मभूमि से सटे शाही ईदगाह मस्जिद को लेकर 18 मुकदमे वर्तमान में इलाहाबाद हाईकोर्ट के समक्ष लंबित हैं. इन सभी मामलों को पहले अलग-अलग तौर पर मथुरा की अदालतों में दायर किया गया था, लेकिन मई 2023 में हाईकोर्ट ने इन सभी मामलों को एक साथ जोड़ते हुए अपने पास स्थानांतरित कर लिया था. ये मुकदमे मुख्य रूप से जन्मभूमि परिसर से कथित “अवैध अतिक्रमण” को हटाने की मांग करते हैं.

हाई कोर्ट के इस स्थानांतरण आदेश को मस्जिद प्रबंधन समिति और बाद में उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। इसके बाद मामला सर्वोच्च न्यायालय तक पहुंचा, जहां उच्चतम न्यायालय ने कुछ मामलों में अंतरिम रोक भी लगाई.

सर्वे कराने पर सुप्रीम कोर्ट का स्टे

दिसंबर 2023 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शाही ईदगाह मस्जिद परिसर का सर्वे कराने के लिए कोर्ट कमिश्नर नियुक्त करने की याचिका को स्वीकार कर लिया था, लेकिन जनवरी 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने इस आदेश के अमल पर स्थगनादेश दे दिया था, जिसे बाद में आगे बढ़ा दिया गया.

मौजूदा फैसले में कोर्ट ने स्पष्ट किया कि वादकारी पक्षों द्वारा प्रयुक्त शब्दों में इस स्तर पर कोई बदलाव न्यायोचित नहीं है, और विवादित स्थल को ‘शाही ईदगाह मस्जिद’ के नाम से ही संबोधित किया जाता रहेगा, जब तक कि मुकदमे की अंतिम सुनवाई में अन्यथा कुछ न कहा जाए.


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