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खत्म हुआ 85 साल का सफर, रानी-काजोल के दादा के फिल्मिस्तान स्टूडियो को लेकर भावुक हुए महेश भट्ट

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July 7, 2025
in महाराष्ट्र
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खत्म हुआ 85 साल का सफर, रानी-काजोल के दादा के फिल्मिस्तान स्टूडियो को लेकर भावुक हुए महेश भट्ट
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मुंबई के गोरेगांव पश्चिम में बना फिल्मिस्तान स्टूडियो जल्द ही टूटने वाला है. कई मशहूर फिल्में, सीरियल और रियलिटी शो को अपना मंच देने वाले इस स्टूडियो को रानी मुखर्जी और काजोल के दादा शशधर मुखर्जी और अशोक कुमार ने 85 साल पहले यानी साल 1940 में शुरू किया था, ये स्टूडियो तोलाराम जलान की पत्नी नीना जलान के नाम पर था और उन्होंने इसे 183 करोड़ में रियल एस्टेट कंपनी आर्केड डेवलपर्स को बेच दिया गया है. अब इस बड़ी जगह को तोड़कर इस पर 3000 करोड़ का रेजिडेंशियल प्रोजेक्ट बनेगा.

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फिल्मिस्तान स्टूडियो के बिकने की खबर से फिल्म इंडस्ट्री में हलचल मच गई है. ऑल इंडिया सिने वर्कर्स एसोसिएशन ने इसे रोकने की मांग की है. उन्होंने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को लेटर लिखकर कहा है कि इस स्टूडियो से फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े हजारों मजदूरों का घर-खर्च चलता है, और इसके बिकने से उनकी रोजी-रोटी छिन जाएगी. दरअसल फिल्मिस्तान से पहले मुंबई के तीन सबसे बड़े और खास स्टूडियो बेचे जा चुके हैं. इनमें हिंदी सिनेमा के शोमैन, राज कपूर का आरके स्टूडियो भी शामिल है, जहां राज कपूर समेत कई बड़े फिल्म बनाने वालों ने अपनी फिल्मों की शूटिंग की थी. इसके अलावा, कमला अमरोही का जोगेश्वरी में बना कमालिस्तान स्टूडियो भी बिक चुका है.

हैदराबाद के निजाम के पैसों से बना था फिल्मिस्तान

फिल्मिस्तान स्टूडियो की शुरुआत की कहानी भी बहुत दिलचस्प है. 1940 के दशक में, अशोक कुमार और शशधर मुखर्जी बॉम्बे टॉकीज में काम करते थे, इस स्टूडियो के मालिक हिमांशु राय के निधन के बाद दोनों भाइयों ने बॉम्बे टॉकीज छोड़ दिया और फिल्मिस्तान स्टूडियो की नींव रखी. इस बड़े स्टूडियो को बनाने के लिए हैदराबाद के निजाम ओस्मान अली खान ने उन्हें पैसे दिए थे.

फिल्मिस्तान स्टूडियो के कई यादगार पल

इस स्टूडियो की दीवारों ने दशकों तक भारतीय सिनेमा के कई खास पलों को देखा है. 2014 में आई आलिया भट्ट और अर्जुन कपूर की फिल्म ‘2 स्टेट्स’ का मशहूर गाना ‘ओफ्फो’ यहीं शूट हुआ था. इसके अलावा, 1940 के बाद इस स्टूडियो में ‘अनारकली’, ‘मुनीमजी’, ‘नागिन’, ‘तुमसा नहीं देखा’ और ‘पेइंग गेस्ट’ जैसी दर्जनों सुपरहिट और पुरानी फिल्मों की शूटिंग हुई है, जिन्होंने भारतीय सिनेमा के इतिहास में अपनी जगह बनाई है. करण जौहर के ‘कॉफी विद करण’ का पहला एपिसोड फिल्मिस्तान स्टूडियो में शूट हुआ था. ‘झलक दिखला जा’ और ‘डांस प्लस’ जैसे कई रियलिटी शो की शूटिंग भी यहां हो चुकी है.

महेश भट्ट का रिएक्शन

फिल्मिस्तान स्टूडियो के बिकने पर इंडस्ट्री के दिग्गज महेश भट्ट ने एक भावुक प्रतिक्रिया शेयर की है. उन्होंने टीवी9 हिंदी डिजिटल के साथ शेयर किए हुए मैसेज में लिखा है कि फिल्मिस्तान स्टूडियो 183 करोड़ में बिक गया है बस यूं ही, यादों से भरी एक जगह अब सिर्फ जमीन बन गई है. मेरी बेटी पूजा को 1989 में लॉन्च करने वाली फिल्म ‘डैडी’ की शूटिंग वहीं हुई थी, वहां पर पुलिस स्टेशन का परमानेंट सेट था. वैसे ही ‘अर्थ’, ‘सारांश’, ‘जनम’, ‘नाम’, और ‘सड़क’ की शूटिंग भी वहां हुई थी. वो जगह मेरे लिए सिर्फ एक स्टूडियो से बढ़कर थी. वहीं मैंने खुद को बिखरा हुआ पाया था, और फिर से अपने कुछ हिस्सों को समेटा था.

बदल रहा है सिनेमा

आगे महेश भट्ट लिखते हैं कि अब वो टॉवर बन जाएगा. जिन दीवारों में हम कभी कहानियां फुसफुसाते थे, वे अब मलबा होंगी. और फिर भी… कुछ कहता है कि ये सिर्फ एक अंत नहीं है. सिनेमा बदल रहा है. आज के युवा इज़ाज़त का इंतजार नहीं करते. वे अपने फोन पर कहानियां सुनाते हैं. वे भावनाओं को सीधे, खड़े फ्रेमों में ढालते हैं — कच्ची, सीधी और पर्सनल. उन्हें रेड कार्पेट की परवाह नहीं. उन्हें सच की परवाह है. थिएटर शांत हैं, ध्यान कम समय तक टिकता है. स्क्रॉल ने स्क्रीन की जगह ले ली है. लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि कहानी कहने की कला मर रही है. इसका मतलब बस यह है कि इसका रूप बदल गया है.

महेश भट्ट आगे बताते हैं कि आज शाम जिस भीड़भाड़ वाले ऑफिस से मैं निकला, वहां मैंने युवा क्रिएटर्स को एक मिनट की फिल्में बनाते देखा, दमदार और भावनाओं से भरी हुई, वो ऊर्जा मुझे याद दिलाती है कि मैंने कैसे शुरुआत की थी — अनिश्चित, पर जलते हुए. फिल्मिस्तान चला गया. अतीत धुंधला रहा है. लेकिन कुछ नया जड़ पकड़ रहा है. एक छोटे शहर की लड़की, किसी के उधार के फोन से, अब ऐसी कहानी सुना सकती है जो लाखों लोगों को छू जाए. औजार अलग हैं. दिल वही है. शायद सिनेमा असल में यही है. एक पल जो गायब होने से पहले कैद हो जाए. एक आवाज जो बनी रहे, भले ही शरीर चला जाए. हम जीते हैं, हम बनाते हैं, हम गायब हो जाते हैं. और फिर भी, कहानी चलती रहती है. आज के कहानीकारों के लिए फिल्मिस्तान भले ही चला गया हो, लेकिन कुछ कहने की, जुड़ने की, महसूस करने की जरूरत आप के अंदर जिंदा रखनी है. अपना सच कहो. सही कैमरे या सही समय का इंतजार मत करो. फ्रेम बदल गया है. पर आत्मा वही है. जो कहना है, कहो इससे पहले कि रोशनी मद्धम पड़ जाए.


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