मध्य-पूर्व की धरती सुलग रही है और ईरान आज उस मोड़ पर खड़ा है, जहां हर रास्ता बर्बादी की ओर जाता दिख रहा है. एक तरफ इजराइल है, जिसने शुक्रवार को ईरानी परमाणु ठिकानों पर जोरदार हमला करके जंग की शुरुआत की. 70 से ज्यादा लोगों की मौत और 350 से ज्यादा घायल हुए. जवाब में ईरान ने भी 150 बैलिस्टिक मिसाइलें दागीं, जिनमें से 6 सीधे तेल अवीव के दिल में आ गिरीं. लेकिन असली सवाल है कि अब आगे क्या? क्या ईरान जंग की आग और तेज करेगा?
याद ये भी रखा जाना चाहिए कि इसी रविवार यानी 15 जून को ओमान में अमेरिका और ईरान के बीच न्यूक्लियर डील पर बातचीत होने वाली थी. मगर फिलहाल वो भी अधर में लटकी हुई है. हालांकि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ईरान से कहा है कि वो अभी भी बातचीत की टेबल पर लौट सकता है. मगर क्या ईरान अमेरिका से समझौता कर लेगा? या फिर हालात को इतना बिगाड़ देगा कि अमेरिका को सीधे मैदान में उतरना पड़े? हर विकल्प में या तो तबाही है, या तौहीन. आइए समझते हैं वे पांच बड़ी वजहें, जिनके चलते ईरान आज एक ऐतिहासिक संकट के सबसे खतरनाक मोड़ पर आ खड़ा हुआ है.
1. जंग जारी रखे तो भारी नुकसान तय
अगर ईरान जवाबी हमलों में इजाफा करता है और बातचीत से किनारा करता है, तो इजराइल की ओर से और भी भयानक हमलों की आशंका है. इससे न सिर्फ पूरा इलाका अस्थिर होगा, बल्कि ईरान की सैन्य ताकत और अर्थव्यवस्था भी भारी नुकसान झेलेगी.
2. समझौता करे तो शर्मिंदगी और सियासी नुकसान
ओमान में रविवार को अमेरिका और ईरान के बीच न्यूक्लियर डील पर बातचीत तय थी. लेकिन इजराइली हमले के बाद अब ईरान असमंजस में है. अगर वो अमेरिका के दबाव में समझौता करता है और अपने परमाणु ठिकानों को बंद करने पर राज़ी हो जाता है, तो ये ईरान के अयोतुल्लाह खामेनेई की अंतरराष्ट्रीय साख और अंदरूनी राजनीति दोनों के लिए झटका होगा. इससे सत्ता प्रतिष्ठान में नाराजगी और जनता में असंतोष बढ़ सकता है.
3. अमेरिका को घसीटे मैदान में, दांव बड़ा है तो खतरा भी
ईरान के सामने एक तीसरा विकल्प भी है. युद्ध को इतना बढ़ा दे कि अमेरिका को भी सीधे मैदान में उतरना पड़े. इससे अमेरिका पर दबाव बनेगा, लेकिन इसका परिणाम बेहद खतरनाक हो सकता है वो पूरी दुनिया के लिए. ये विकल्प खुद ईरान के लिए भी विनाशकारी साबित हो सकता है.
4. नेतन्याहू का दावा परमाणु कार्यक्रम के सिर पर मारा है
इजराइल के प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने अपने हमले को लेकर बड़ा बयान दिया कि “हमने ईरान के न्यूक्लियर हथियार कार्यक्रम के सिर पर वार किया है.” यह सीधा संदेश है कि इजराइल किसी भी कीमत पर ईरान को परमाणु शक्ति नहीं बनने देगा. ये कूटनीतिक चेतावनी से ज्यादा युद्धघोष जैसी है.
5. चारों ओर दुश्मन बाहर भी, अंदर भी
ईरान आज न केवल इजराइल से जूझ रहा है, बल्कि देश के अंदर भी उसे जनता और कट्टरपंथी गुटों के आक्रोश का सामना करना पड़ रहा है. ऊपर से अमेरिका का दबाव और नए प्रतिबंधों का खतरा भी सिर पर है. ऐसे में ईरान के पास कोई आसान विकल्प नहीं बचता. लड़े तो बर्बादी तय है और झुके तो साख का नुकसान.