ईरान के न्यूक्लियर प्रोग्राम को ध्वस्त करने के लिए अमेरिका ने हाल ही में बड़ी सैन्य कार्रवाई की. उसके फोर्डो, नतांज और इस्फहान जैसे हाई-प्रोफाइल परमाणु ठिकानों को टारगेट किया गया. लेकिन हैरानी की बात ये रही कि ईरान का सबसे अहम और संवेदनशील न्यूक्लियर बेस जिसे इस्फहान कहा जाता है, इस हमले में लगभग सुरक्षित बच निकला.जबकि यही वो जगह मानी जाती है, जहां ईरान का सबसे बड़ा यूरेनियम भंडार छिपा हुआ है. सवाल ये है कि जब अमेरिका के पास दुनिया के सबसे ताकतवर बम हैं, तो फिर इस ठिकाने पर असर क्यों नहीं पड़ा?
जबकि यही वो जगह मानी जाती है, जहां ईरान का सबसे बड़ा यूरेनियम भंडार छिपा हुआ है. सवाल ये है कि जब अमेरिका के पास दुनिया के सबसे ताकतवर बम हैं, तो फिर इस ठिकाने पर असर क्यों नहीं पड़ा?
इस्फहान पर बंकर-बस्टर क्यों नहीं चला?
पेंटागन के मुताबिक, इस्फहान का न्यूक्लियर ठिकाना जमीन के इतने अंदर है कि अमेरिका के सबसे ताकतवर बंकर-बस्टर बम भी वहां तक नहीं पहुंच सकते थे. यही वजह है कि अमेरिका ने इस जगह पर हवाई बमबारी की बजाय सिर्फ टॉमहॉक मिसाइलों से हमला किया. लेकिन जानकारों का मानना है कि ये स्ट्राइक सिर्फ सतह पर असर डाल पाई, अंदर मौजूद असली न्यूक्लियर सामग्री तक नहीं पहुंच सकी.
इस्फहान में है ईरान का असली खजाना?
अमेरिकी खुफिया एजेंसियों के मुताबिक, इस्फहान के अंदर ही ईरान का लगभग 60% एनरिच्ड यूरेनियम स्टॉकपाइल छिपा हुआ है. यही वो संवर्धित यूरेनियम है, जो किसी भी देश को परमाणु हथियार बनाने की क्षमता देता है. मतलब ये कि इस जगह पर हमला नाकाम रहने का मतलब है कि ईरान की न्यूक्लियर ताकत पूरी तरह खत्म नहीं हुई.
यूरेनियम गया कहां? अमेरिका को भी नहीं पता
एक बड़ी बात ये सामने आ रही है कि ईरान ने हमले से पहले शायद कुछ यूरेनियम को इन ठिकानों से कहीं और शिफ्ट कर दिया था. अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने दावा किया कि कुछ भी नहीं हटाया गया, लेकिन ब्रिफिंग में शामिल सांसदों ने साफ किया कि कितना यूरेनियम कहां है, इसकी पक्की जानकारी किसी के पास नहीं है. जानकारों का कहना है कि हमलों से ईरान की जमीनी ताकत पर असर जरूर पड़ा है लेकिन खतरा अभी टला नहीं है.