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Home महाराष्ट्र

हिंदी बनाम मराठी जैसी कोई बात नहीं… आदित्य ठाकरे ने बताया महाराष्ट्र में असली विवाद क्या है?

News room by News room
July 7, 2025
in महाराष्ट्र
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हिंदी बनाम मराठी जैसी कोई बात नहीं… आदित्य ठाकरे ने बताया महाराष्ट्र में असली विवाद क्या है?
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महाराष्ट्र में मराठी बनाम हिंदी के विवाद को लेकर शिवसेना (यूबीटी) विधायक आदित्य ठाकरे का एक बयान सामने आया है. उन्होंने कहा महाराष्ट्र में हिंदी बनाम मराठी भाषा की कोई बात ही नहीं है. यह मुद्दा सिर्फ सोशल मीडिया पर ही चल रहा है, महाराष्ट्र की जमीन पर ऐसा कोई विवाद नहीं है. उन्होंने कहा कि विवाद सिर्फ कक्षा 1 के छात्रों के तीन भाषाओं के बोझ को लेकर था और तीसरी भाषा हिंदी क्यों होनी चाहिए?

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आदित्य ठाकरे का कहना था कि महाराष्ट्र में अनेक भाषाएं बोली जाती हैं, तो तीसरी भाषा के रूप में हिंदी ही क्यों होनी चाहिए. उन्होंने कहा कि हम अपनी मातृभाषा का अपमान नहीं सहेंगे.

तीसरी भाषा हिंदी क्यों होनी चाहिए?

आदित्य ठाकरे ने हिंदी भाषा विवाद को लेकर कहा कि सोशल मीडिया और गोदी मीडिया मराठी बनाम हिंदी का मुद्दा फैला रहे हैं. महाराष्ट्र की जमीन पर तो ऐसा कोई मुद्दा है ही नहीं. उन्होंने स्पष्ट करते हुए कहा कि विवाद सिर्फ कक्षा 1 के छात्रों के तीन भाषाओं के बोझ को लेकर था. उन्होंने कहा तीसरी भाषा हिंदी ही क्यों होनी चाहिए? महाराष्ट्र में अनेक भाषाएं बोली जाती है, लेकिन हम अपने ही राज्य में अपनी मातृभाषा का अपमान बर्दाश्त नहीं करेंगे. ठाकरे ने कहा कि हम किसी भी भाषा को अपने ऊपर थोपना बर्दाश्त नहीं करेंगे.

कानून को अपने हाथ में न लें

पिछले दिनों मनसे पार्टी के कार्यकर्ताओं ने मराठी भाषा न बोले जाने पर एक दुकानदार की पिटाई कर दी थी. जिसके बाद आदित्य ठाकरे ने कहा था कि हम नहीं चाहते कि महाराष्ट्र या मराठी भाषा का अपमान हो. उन्होंने अपने एक बयान में कहा था कि हम चाहते हैं कि हमारी मातृभाषा मराठी का अपमान न हो. कोई भी भाषा जबरन थोपी न जाए. उन्होंने कहा कि हम नहीं चाहते कि कोई कानून अपने हाथ में ले. लेकिन जब इसका उल्टा होता है और मराठी या महाराष्ट्र का अपमान होता है तो मामला बिगड़ सकता है.

दरअसल, महाराष्ट्र सरकार ने अप्रैल महीने में हिंदी भाषा को लेकर एक फैसला लिया था, जिसमें उन्होंने कक्षा 1 से 5 तक के सभी छात्रों के लिए तीसरी भाषा के रूप में हिन्दी को अनिवार्य कर दिया था. फडणवीस के इस फैसले का जमकर विरोध हुआ. अंत में उन्होंने अपना यह फैसला वापस लेते हुए कहा कि हिंदी तीसरी भाषा के रूप में अनिवार्य नहीं है. अगर कोई छात्र दुसरी भाषा लेना चाहता है तो वह ले सकता है.


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