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कुंभ मेला, मनसा देवी मंदिर हादसा…हरिद्वार में 113 साल में भगदड़ ने छीनीं कई जिंदगियां, कैसे हर बार फेल हुई व्यवस्था?

News room by News room
July 28, 2025
in उत्तराखंड
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कुंभ मेला, मनसा देवी मंदिर हादसा…हरिद्वार में 113 साल में भगदड़ ने छीनीं कई जिंदगियां, कैसे हर बार फेल हुई व्यवस्था?
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उत्तराखंड के हरिद्वार में रविवार को मनसा देवी मंदिर में भगदड़ मची और 6 लोगों की मौत हो गई, 35 लोग घायल हो गए. ये हादसा एक अफवाह फैलने की वजह से हुआ. उत्तराखंड सरकार की ओर से मृतकों के परिजनों को 2-2 लाख और घायलों को 50-50 हजार रुपये का मुआवजा देने की घोषणा की गई, लेकिन इस हादसे के बाद एक बार फिर सवाल खड़े हो गए कि आखिर सुरक्षा व्यवस्था क्यों नहीं की गई.

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इस हादसे ने 28 साल पहले के जख्म फिर से ताजा कर दिए. तब भी एक अफवाह फैली थी और भीड़ में भगदड़ मच गई थी. उस समय भी भगदड़ में 20 से ज्यादा जानें चली गई थीं. ये दिन था 15 जुलाई 1997 का… जब हरिद्वार में हर की पैड़ी के पार तत्कालीन घाट पर सोमवती अमावस्या के मौके पर बड़ी तादात में श्रद्धालु पहुंचे थे. श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ी हुई थी और इसी बीच एक अफवाह उड़ी कि हर की पैड़ी के पार तत्कालीन घाट पर आग लग गई है. इस अफवाह के बाद वही हालात हो गए, जो रविवार को मनसा देवी मंदिर में हुई भगदड़ में हुए.q`

आग लगने की अफवाह उड़ी

1997 में 15 जुलाई को गंगा घाट स्नानार्थियों से भरे पड़े थे, जब आग लगने की अफवाह उड़ी तो लोगों में अफरा तफरी मच गई. सभी ने इधर-उधर भागना शुरू कर दिया. भीड़ में लोग एक-दूसरे को कुचलते हुए निकल गए और 20 श्रद्धालुओं की इस हादसे में मौत हो गई. उस समय उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश एक ही था. हादसे के बाद जांच और व्यवस्थाओं को सुधारने के लिए एक आयोग का गठन किया गया, जिसमें कई अहम सुझाव दिए गए.

सुरक्षा व्यवस्था के लिए 44 सुझाव

न्यायमूर्ति राधे कृष्ण अग्रवाल को जांच आयोग का अध्यक्ष बनाया गया. आयोग ने जांच शुरू की और सुरक्षा व्यवस्था दुरुस्त करने के लिए 44 सुझाव दिए गए. इनमें अलग-अलग कई अहम सुझाव थे. सुझाव दिया गया था कि हरिद्वार में मेला प्राधिकरण का गठन करना चाहिए. इसके साथ ही स्वयंसेवी संस्थाओं का सहयोग लेने और गंगा आरती क्षेत्र को बड़ा करने का भी सुझाव दिया गया था. मनसा देवी में भीड़ को मैनेज करने और आसपास के अतिक्रमण को हटाने का भी सुझाव दिया गया था.

लेकिन कुछ ही सुझाव पर काम किया गया और बाकियों को नजरअंदाज कर दिया गया था. अब जब 28 साल बाद फिर से मनसा देवी में भगदड़ हुई तो सवाल खड़े हो गए कि आखिर इन सुझावों पर काम क्यों नहीं किया गया. जांच आयोग के सुझाव सिर्फ फाइलों तक ही क्यों सिमट कर रह गए और हालात वही रहे. 1997 के बाद 2025 में भी भगदड़ हुई और उस वक्त 20 तो अब 6 लोगों की मौत हुई.

हरिद्वार में अर्द्धकुंभ का आयोजन

डेढ़ साल बाद 2027 में हरिद्वार में अर्द्धकुंभ का आयोजन होने जा रहा है. फिर से करोड़ों श्रद्धालुओं की भीड़ हरिद्वार में उमड़ने की उम्मीद है. ऐसे में श्रद्धालुओं की भीड़ को मैनेज करने की चुनौती होगी. न सिर्फ 1997 बल्कि, 1912 से भगदड़ का सिलसिला शुरू हुआ था. 1912 से 2011 तक 113 सालों में कई बार हरिद्वार से भगदड़ के मामले सामने आए, जब-जब कुंभ के दौरान भगदड़ मची और लोगों की मौत हुईं.

  1. 1912 में हरिद्वार में कुंभ के दौरान भगदड़ मची और लोगों के पैरों के नीचे दबने से 7 लोगों की मौत हो गई थी.
  2. इसके बाद 1966 में फिर से हरिद्वार में कुंभ के दौरान सोमवती स्नान पर भगदड़ मच गई और इस बार 10-20 नहीं बल्कि 52 लोगों की जान गई.
  3. 1986, एक ऐसा साल था, जब हरिद्वार में सबसे बड़ी और भयावह घटना हुई. इस साल कुंभ में 150 श्रद्धालुओं की मौत हो गई.
  4. साल 1996 में भी कुंभ के दौरान सोमवती स्नान पर ही भगदड़ हुई और 22 जिंदगियां पैरों में दब गईं.
  5. इसके बाद साल 2010 में फिर से भगदड़ की घटना हुई और इस बार कुंभ में आए 7 लोगों की मौत हुई, 11 लोग घायल भी हो गए थे.
  6. इसके बाद साल 2011 में भी भगदड़ मची. लोग अपनी जान बचाने के लिए भागे और 20 लोगों की पैरों में कुचले जाने से मौत हो गई.

इन सभी हादसों के बाद भी सुझाव सामने आए, लेकिन कुछ पर अमल किया गया और कुछ को फिर से नजरअंदाज कर दिया गया. इस तरह साल बढ़ते गए और हादसों की संख्या भी बढ़ती गई. भगदड़ में लोगों की जानें जाती गईं. सुरक्षा व्यवस्था को बेहतर बनाने की हर बार बात कही तो गई, लेकिन हालात क्या हैं, वह सभी के सामने है. अब उम्मीद है कि 2027 में आयोजित होने वाले कुंभ में कोई अनहोनी नहीं होगी और श्रद्धालुओं की सुरक्षा के खास इंतजाम किए जाएंगे.


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