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कहीं जोशीमठ न बन जाए मैक्लोडगंज! धर्मशाला रूट पर कहीं 4 तो कहीं 6 इंच की दरारें, वैज्ञानिक ने याद दिलाया 120 साल पुराना प्रलय

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June 23, 2025
in उत्तराखंड
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कहीं जोशीमठ न बन जाए मैक्लोडगंज! धर्मशाला रूट पर कहीं 4 तो कहीं 6 इंच की दरारें, वैज्ञानिक ने याद दिलाया 120 साल पुराना प्रलय
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उत्तराखंड के चमोली जिले का जोशीमठ साल 2023 में खूब चर्चा में रहा. यहां भू-धंसाव और घरों में पड़ी दरारों ने सरकार से लेकर प्रशासन तक की नींदे उड़ा दी थी. नतीजन, लोगों को घरों से निकालकर सुरक्षित स्थान पर पहुंचाना पड़ा. अब हिमाचल के मैक्लोडगंज के लोगों को भी कुछ ऐसी ही चिंता सता रही है. यहां धर्मशाला- मैक्लोडगंज रूट पर जगह-जगह 4 से 6 इंच की दरारें सड़क पर आ गई हैं.

मई में मंद पड़े पर्यटन कारोबार को भले ही जून में संजीवनी मिली हो, लेकिन धर्मशाला से मैक्लोडगंज के लिए शॉर्टकट बदहाल खड़ा डंडा मार्ग (सड़क), पर्यटन के लिए ही डंडा साबित हो रहा है. इस मार्ग पर जगह-जगह दरारें पड़ी हुई हैं, जो कि पहले 2 इंच की थी, जबकि वर्तमान में बढक़र 4 से 6 इंच की हो गई हैं. ऐसे में इस मार्ग पर आए दिन छिटपुट दुर्घटनाएं घटित होना आम बात हो गई हैं.

कारोबारियों का कहना है कि धर्मशाला से मैक्लोडगंज वाया खड़ा डंडा मार्ग की हालत न सुधारी गई तो कभी भी बड़ा हादसा हो सकता है. कई बार प्रशासन के समक्ष इस मामले को उठाया गया, लेकिन कोई समाधान नहीं हुआ, बल्कि समस्या और बढ़ गई है, ऐसे में यह कहना गलत न होगा कि प्रशासन भी सडक़ के सुधार के लिए शायद बड़े हादसे का इंतजार कर रहा है.

दरारों के साथ गड्ढों की भरमार

खड़ा डंडा मार्ग पर एक से दो किलोमीटर की परिधि में जगह-जगह दरारें पड़ी हुई हैं. साथ ही गड्ढों की भी भरमार है. बाहरी राज्यों से आने वाले पर्यटक शॉर्टकट के चक्कर में इस मार्ग पर वाहन लेकर चढ़ते तो हैं, लेकिन इसका खामियाजा उन्हें गाडिय़ों के नुकसान के रूप में भुगतना पड़ता है. यही नहीं, इस मार्ग पर सडक़ किनारे की गई अव्यवस्थित पार्किंग भी बड़ी समस्या है. पहले ही रोड बदहाल हैं, ऊपर से सडक़ किनारे खड़ी गाडिय़ां समस्या को चौगुना कर रही हैं.

धर्मकोट निवासी रशपाल का कहना है कि खड़ा डंडा मार्ग की हालत खराब है. हर दिन इस मार्ग पर गाडिय़ां टूट व स्किड हो रही हैं. प्रशासन व सरकार से आग्रह है कि बरसात से पहले बंद पड़ी नालियों को बहाल कर सडक़ की दशा सुधारी जाए. दिन के समय बड़े वाहनों के मैक्लोडगंज क्षेत्र में प्रवेश पर रोक लगाई जाए. जल्द सड़क को नहीं सुधारा गया तो बड़ा हादसा भी पेश आ सकता है. पहले दरारें 2 इंच की थी, जो कि सुधार के अभाव में बढक़र 4 से छह इंच की हो गई हैं, जिसमें की पूरा टायर फंस जाता है, जो कि दोपहिया वाहन चालकों के लिए खतरे से खाली नहीं है.

‘ऐसा न हो कि कट जाए संपर्क’

होटल एंड रेस्टोरेंट एसोसिएशन स्मार्ट सिटी धर्मशाला के वरिष्ठ उपाध्यक्ष अशोक पठानिया ने कहा कि बरसात से पहले बदहाल सड़क मार्गों की हालत सुधारी जाए, अन्यथा ऐसा न हो कि ऊपरी क्षेत्र जिला मुख्यालय से कट जाए. उन्होंने कहा कि भागसूनाग, धर्मकोट, मैक्लोडगंज, नडडी से गुजरने वाले खड़ा डंडा मार्ग की हालत दयनीय है. मैक्लोडगंज के लिए प्रस्तावित मार्गों का कार्य कछुआ गति से चल रहा है. बदहाल सडक़ों पर आए दिन छिटपुट दुर्घटनाएं होती रहती हैं. सडक़ों की हालत खराब है, ऊपर से पार्किंग समस्या. सड़कों किनारे आइडल पार्किंग भी समस्या बढ़ा रही है. पर्यटक भी यहां आकर खुद को ठगा सा महसूस करते हैं.

होटल एंड रेस्टोरेंट एसोसिएशन स्मार्ट सिटी धर्मशाला के अध्यक्ष राहुल धीमान ने कहा कि लंबे समय से इस समस्या को प्रशासन के समक्ष उठाया जा रहा है. यह समस्या तीन साल से चली आ रही है, खड़ा डंडा मार्ग बदहाल है. करीब एक से दो किलोमीटर सडक़ या तो एक तरफ से बैठ गई है या फिर उसमें गड्ढे पड़े हुए हैं. सडक़ मार्ग, पर्यटन की लाइफ लाइन हैं. थोड़े में सुधार न करके शायद प्रशासन बड़े नुकसान के बाद हरकत में आएगा.

सिस्मिक जोन 5 में धर्मशाला

दरअसल धर्मशाला आज भी सिस्मिक जोन 5 के तहत आता है और धर्मशाला के कोतवाली बाज़ार से लेकर ग्लोबल सिटी मैक्लोडगंज तक जगह जगह जमीन लगातार कई सालों से धंसती जा रही है. कई मर्तबा तो उस धंसती हुई जमीन में दो पहिया वाहन और चार पहिया वाहन भी दुर्घटना का शिकार हो चुके हैं. नतीजतन इस पर फिर से बहस छिड़ गई है कि आखिर इसकी वजह क्या है और इसे रोका कैसे जाए.

’28 ऐसे स्पॉट, जो कभी भी धंस सकते हैं’

इसको लेकर सेंट्रल यूनिवर्सिटी के सीनियर प्रोफेसर और भू वैज्ञानिक अमरीश कुमार महाजन ने दावा किया है कि जब वो बाडिया इंस्टीट्यूट में शोध कर रहे थे तो पाया कि धर्मशाला मैक्लोडगंज की मिट्टी गीली मिट्टी में तब्दील हो चुकी है, जिसकी सबसे बड़ी वजह यहां का लचर ड्रेनेज सिस्टम है. इसके अलावा अब तक भी सीवेज व्यवस्था को सही तरीके से कायम न कर पाना है. नतीजतन धर्मशाला में कोतवाली बाजार से लेकर दलाई लामा खड़ा डंडा रोड, चोला, चांदमारी मैक्लोडगंज समेत कई इलाकों में लगातार जमीन का धंसना है. उन्होंने कहा कि साल 1998 में उन्होंने रिसर्च के दौरान पाया कि यहां 28 ऐसे स्पॉट हैं जो कभी भी धंस सकते हैं और वो सब के सब भू स्खलन की जद्द में हैं.

प्रोफेसर महाजन ने कहा कि जिस तरह से यहां कंस्ट्रक्शन हो रही है और सीमेंट्स रोड्स बनाए जा रहे हैं ये तब तक सुरक्षित नहीं. जब तक यहां प्रॉपर ड्रेनेज सिस्टम को स्थापित नहीं किया जाता, उन्होंने कहा कि उन्हें इस बात का डर है कि अगर यहां साल 1905 की तरह फिर से कोई भूकंप आया तो यहां बहुत बड़ा नुकसान हो सकता है. दरअसल, 1905 के भूकंप में कांगड़ा, मैक्लॉडगंज और धर्मशाला की कई इमारतें तबाह हो गई थीं. भूकंप में करीब 19,000 लोग मारे गए थे.

वहीं धर्मशाला की सड़कों को सुधारने का जिम्मा जिस PWD के पास है, वो मानसून आते ही सतर्क हो जाता है. इस दौरान उनकी ओर से जगह जगह निर्माण कार्य छेड़ दिए जाते हैं. बावजूद इसके उन खड्डों और धंसती हुई सड़कों को विभाग आज दिन तक प्रॉपर ठोस तरीके से मेंटेन नहीं कर पाया है. जब इस बाबत PWD अधिकारियों से बात की जाए तो उनकी ओर से कई तरह के तर्क-वितर्क पेश किए जाते हैं.

PWD के SDO क्या बोले?

PWD के SDO DS ठाकुर ने बताया कि कोतवाली बाजार से लेकर कर्मू मोड तक सड़क के सुधारीकरण का कार्य बड़े ही युद्ध स्तर पर किया जा रहा है साथ ही धंस चुके खड्डों को भरने के लिए भी विभाग के उच्च अधिकारियों की ओर से दिशा निर्देश दिए गए हैं. साथ ही उन्होंने बताया कि इसके पीछे आईपीएच विभाग को भी जिम्मेदारी से कार्य करने की जरूरत है कई जगहों पर तो आईपीएच विभाग की कार्यप्रणाली ही इन सब घटनाओं के लिए जिम्मेदार नजर आती है.

चाहे कोई लाख दलीलें दे ले, मगर सवाल आज भी ज्यों का त्यों बरकरार है कि धर्मशाला जैसा शहर जोकि सिस्मिक जॉन 5 में आता है, भू वैज्ञानिक बार बार हमारे हुक्मरानों प्रशानिक अधिकारियों और व्यवस्था के संचालकों को आगाह कर चुके हैं कि यहां बेतरतीब तरीके से होने वाला शहरीकरण मानवता के लिए हर लिहाज से खतरा है. फिर क्या उस पर कोई ठोस फैसला लेने की बजाय, हमें सिर्फ मानसून के दौरान ही सजगता दिखाने की जरूरत है या सही मायनों में इस विषय पर गंभीरता से काम करते हुए इतिहास की पुनरावृति न हो और भविष्य में मानवता पर आने वाला संकट टाला जा सके, उस दिशा में अग्रसर होना चाहिए, अगर हां तो फिर इस दिशा में सख्ती से क्यों नहीं निपटा जा रहा और क्यों इस पर किसी समय विशेष में काम होता है सारा साल भर क्यों नहीं… इस यक्ष प्रश्न का जवाब मिलना बेहद जरूरी है .

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