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दिल्ली HC ने इस मामले में सुनाया फैसला, कहा- धारा 377 वैवाहिक बलात्कार को मान्यता नहीं देती

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May 22, 2025
in दिल्ली/NCR
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दिल्ली HC ने इस मामले में सुनाया फैसला, कहा- धारा 377 वैवाहिक बलात्कार को मान्यता नहीं देती
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दिल्ली हाईकोर्ट ने अपनी पत्नी के साथ “अप्राकृतिक” यौन संबंध बनाने के एक मामले में एक पति को लेकर फैसला सुनाया. इस मामले में कोर्ट ने एक व्यक्ति के खिलाफ मुकदमा चलाने का निर्देश देने वाले ट्रायल कोर्ट के आदेश को यह कहते हुए रद्द कर दिया है कि आईपीसी की धारा 377 वैवाहिक बलात्कार (Marital Rape) को मान्यता नहीं देती है. अदालत ने यह भी कहा कि ऐसे कृत्यों को दंडित करने वाली धारा 377 वैवाहिक रिश्ते में लागू नहीं होगी, खासकर जब सहमति का आरोप गायब हो.

जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा ट्रायल कोर्ट के आदेश के खिलाफ सुनवाई कर रही थीं. इस केस में पति पर कथित तौर पर अपनी पत्नी के साथ ओरल सेक्स करने के लिए उसके खिलाफ धारा 377 (अप्राकृतिक अपराधों के लिए सजा) का आरोप तय करने का निर्देश निचली अदालत ने दिया था. 13 मई को फैसले में कहा गया कि कानून वैवाहिक बलात्कार की अवधारणा को मान्यता नहीं देता है.

कोर्ट ने क्या-क्या कहा?

कोर्ट ने आगे कहा कि यह देखते हुए कि पत्नी ने खासतौर पर यह आरोप नहीं लगाया कि उसकी इच्छा के विरुद्ध या उसकी सहमति के बिना यौन संबंध बनाए गए थे. दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा, “नवतेज सिंह जौहर (मामले) के बाद आईपीसी की धारा 377 के तहत किसी भी दो एडल्ट के बीच हुए संबंध में सहमति अहम रोल प्ले करती है, लेकिन इस केस में सहमति थी या नहीं यह चीज गायब है.

बेंच ने यह भी कहा कि ओरल सेक्स जैसे कार्य अब आईपीसी की धारा 375 (ए) में परिभाषित बलात्कार के दायरे में आते हैं, लेकिन इसके आगे कोर्ट ने कहा, यह मानने का कोई कारण नहीं है कि याचिकाकर्ता को बलात्कार प्रावधान के “अपवाद” के तहत पतियों को दी गई छूट से सुरक्षा नहीं मिलेगी.

पत्नि की बातों में कोर्ट को संदेह

साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा कि एक तरफ पत्नि ने पति पर “नपुंसक” होने का आरोप लगाया और दूसरी तरफ अननेचरल सेक्स के लिए आरोप लगाया. इसी के साथ उस ने अपने पति और ससुर पर अवैध संबंध स्थापित करने और उसके परिवार से पैसे ऐंठने के इरादे से उससे शादी करने की साजिश रचने का आरोप लगाया.

इन आरोपों का डिफेंड करते हुए पति ने तर्क दिया कि विवाह कानूनी रूप से वैध था, जिसमें सहमति से यौन गतिविधियों के लिए सहमति का निहित अनुमान लगाया गया था और इसलिए विचाराधीन कृत्यों को धारा 377 के तहत अपराध नहीं माना जा सकता है.

जज ने पत्नी के दावों में एक विरोधाभास” की तरफ इशारा किया. कोर्ट ने कहा, एक तरफ पत्नी ने पुरुष पर यौन रूप से अक्षम होने का आरोप लगाया, साथ ही उसने मौखिक सेक्स जैसे कृत्यों से जुड़े आरोप भी लगाए.

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