एक अधिकारी ने साल 1983 में एक विंटेज कार 20 हजार रुपये में खरीदी थी. ये कार उसने साल 1992 में 21 लाख रुपये की बेच दी. इसका जिक्र उसने टैक्स रिटर्न में नहीं किया. फिर कुछ ऐसा हुआ कि मामला हाई कोर्ट तक पहुंच गया. इस मामले में बॉम्बे हाई कोर्ट ने हाल ही में माना कि बेची गई कार उसकी व्यक्तिगत संपत्ति नहीं थी और पूंजीगत लाभ कर के अधीन थी, क्योंकि इसके व्यक्तिगत उपयोग का कोई सबूत नहीं था.
हाई कोर्ट ने कहा कि व्यक्तिगत वस्तुओं का सामान्य रूप से उपयोग किया जाना दर्शाया जाना चाहिए, न कि केवल स्वामित्व के लिए सक्षम होना. मुख्य न्यायाधीश आलोक अराधे और जस्टिस संदीप मार्ने की खंडपीठ ने 1931 फोर्ड टूरर की बिक्री पर पूंजीगत लाभ कर को बरकरार रखते हुए कहा कि किसी कार का केवल निजी उपयोग में लाया जाना उसे कर कानूनों के तहत निजी संपत्ति नहीं बनाता.