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जो हूती दुनिया में किसी की नहीं सुनते, वहां भारत के इस बुजुर्ग ने कैसे चलाया अपना सिक्का, बची निमिषा की जान

News room by News room
July 16, 2025
in विदेश
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जो हूती दुनिया में किसी की नहीं सुनते, वहां भारत के इस बुजुर्ग ने कैसे चलाया अपना सिक्का, बची निमिषा की जान
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केरल की नर्स निमिषा प्रिया को 16 जुलाई को यमन की राजधानी सना की जेल में फांसी दी जानी थी. लेकिन ठीक एक दिन पहले, 15 जुलाई को यमन की अदालत ने अचानक फांसी पर ब्रेक लगा दिया. ये वही इलाका है, जो हूती विद्रोहियों के कब्जे में है. वो हूती जिनसे बातचीत करना अमेरिका तक के लिए टेढ़ी खीर बन चुका है.

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ANI की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत सरकार ने हाल के दिनों में कोशिशें तेज की थीं कि पीड़ित परिवार से म्यूचुअल एग्रीमेंट यानी समझौता हो सके. यमन के कानून के मुताबिक, हत्या के मामलों में ‘ब्लड मनी’ देने पर मृत्युदंड टल सकता है. इस मोड़ पर सामने आते हैं 94 वर्षीय कंथापुरम एपी अबूबक्कर मुसलियार, जिन्हें भारत में ‘ग्रैंड मुफ्ती ऑफ इंडिया’ कहा जाता है.

जब धार्मिक कूटनीति बनी सबसे बड़ा हथियार

भारत सरकार की आधिकारिक कोशिशों के साथ-साथ मुसलियार ने वो किया जो शायद किसी सरकारी तंत्र के लिए भी नामुमकिन था- यमन के धार्मिक ताकतवरों से सीधा संवाद. उन्होंने यमन के सूफी इस्लामिक विद्वान शेख हबीब उमर बिन हाफिज से संपर्क साधा. शेख उमर ने तुरंत अपने धार्मिक और सामाजिक नेटवर्क को सक्रिय किया और तालाल अब्दो महदी (जिसकी हत्या के आरोप में निमिषा दोषी पाई गई थीं) के परिवार, जजों, और कबायली नेताओं से बातचीत शुरू कर दी.

हूती कंट्रोल वाले यमन में हुई बातचीत की बैठक

हबीब उमर की अगुवाई में उत्तर यमन में एक आपात बैठक हुई जिसमें सना की क्रिमिनल कोर्ट के चीफ जज, पीड़ित परिवार, सरकारी अफसर और कबीलों के प्रमुख शामिल हुए. यह वही यमन है जहां हूती विद्रोही रोज़ रेड सी में व्यापारिक जहाज़ों पर ड्रोन और मिसाइलें दागते हैं. वहां पर इस तरह की बातचीत हो पाना, वो भी भारत के कहने पर, अपने आप में एक बड़ी बात है. बैठक के बाद महदी के परिवार ने संकेत दिए कि वे ब्लड मनी की पर बात करने को तैयार हैं, और उन्हें थोड़ा और वक्त चाहिए. यानी फांसी की उलटी गिनती पर फिलहाल पॉज लग गया.

क्या था पूरा मामला?

2008 में यमन गईं निमिषा प्रिया एक नर्स थीं. बाद में उन्होंने अपनी क्लिनिक खोली, जिसके लिए एक स्थानीय पार्टनर होना जरूरी था. उन्होंने यमनी नागरिक तालाल अब्दो महदी से साझेदारी की. लेकिन निमिषा के परिवार का कहना है कि महदी ने बाद में उनका पासपोर्ट छीन लिया और उन्हें प्रताड़ित करने लगा. निमिषा ने महदी को बेहोश करने के लिए उसे सिडेटिव्स दीं ताकि वो पासपोर्ट लेकर भाग सकें, लेकिन महदी की मौत हो गई. इसके बाद उन्हें एयरपोर्ट से गिरफ्तार कर लिया गया और 2020 में उन्हें मौत की सजा सुनाई गई.

सजा पर रोक लगाने की कोशिशें जारी

भारत सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि वह हरसंभव प्रयास कर रही है, लेकिन यमन की वर्तमान स्थिति और हूती कंट्रोल के चलते हस्तक्षेप सीमित है. बावजूद इसके भारतीय धर्मगुरु की मध्यस्थता के चलते जो दरवाज़ा खुला, उसने उम्मीद जगा दी है. वहीं, सूफी स्कॉलर हबीब उमर के प्रतिनिधि फिर से महदी के परिवार से मिलेंगे, ताकि बातचीत किसी अंतिम समझौते तक पहुंचे. अगर पीड़ित परिवार ब्लड मनी स्वीकार कर लेता है, तो निमिषा की जान बच सकती है.


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